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 वो माटी के मितवा भैया (हेम के आल्हा छंद)


वो माटी के मितवा भैया, तँय हर धरती के भगवान।
नागर बइला संग तुतारी, हावय तोर जगत पहचान।।

अरे तता धुन गजब सुनाथे, मुख मा भरे ददरिया राग।
बासी चटनी नून सुहावय, जागय गा जिनगी के भाग।।

माटी के कोरा मा खेलत, ओकर सेवा रोज बजाय।
अपने जाँगर हवे भरोसा, दया मया ला सबके पाय।।

दया मया के भाव भरे हे,  सादा सिधवा रहय किसान।
गार पसीना धरती सींचय, लहलहाय गा ओकर धान।।

सुतउठ के धरती ला सुमिरे, सुरुज देव ला माथ नवाय।
सुन चिरई के गुत्तुर बोली, जिनगी भर जे खेत कमाय।।

भूख प्यास सबला ओ सहिथे, सहिथे दिनभर कतको झाँझ।
काम बुता मा कहाँ पता हे, दिन बुड़के हो जावय साँझ।।

दिनभर काम बुता हा पुरथे, बस रतिहा मा मिलथे छाँव।
सुते उठे के पहिली परथस, ये भुइँया के तँय हर पाँव।।

पेर पेर के जाँगर ला तँय, सोन सही उपजाथस धान।
जग के पालन तही करइया, माटी के तँय हरस मितान।

-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र -01
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा (छ. ग.)

टिप्पणियाँ

सुनीता शानू ने कहा…
कैसे समझेंगे हेम हमें तो छत्तीसगढ़ी भाषा आती ही नही है.. :(

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